Wednesday, January 15, 2025
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अल्पसंख्यकों को योगी सरकार का झटका, 28 योजनाओं में मिलने वाला 20 फीसदी कोटा समाप्त

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। राज्य सरकार ने फैसला किया है कि राज्य के समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत चलने वाली 28 योजनाओं में से अल्पसंख्यकों के मिलने वाला कोटा खत्म कर दिया जाए। राज्य सरकार ने इसके आदेश दे दिए हैं और राज्य के समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने भी इसे मंजूरी दे दी है।
इसके बाद अब इस प्रस्ताव को कैबिनेट में प्रस्तुत किया जाएगा जहां इसे मंजूरी मिलते ही कोटा खत्म हो जाएगा। उत्तर प्रदेश में कुल 85 योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 प्रतिशत कोटे का लाभ दिया जा रहा है। इनमें सबसे ज्यादा समाज कल्याण और ग्राम विकास विभाग की हैं। अब तक तमाम शासनादेशों में लिखा जाता था कि योजना में कम-से-कम 20 प्रतिशत अल्पसंख्यकों को कवर किया जाए।

साथ ही जिन क्षेत्रों में कम-से-कम 25 प्रतिशत आबादी अल्पसंख्यकों की होती थी, वहां योजनाओं को सख्ती से लागू किए जाने के निर्देश होते थे। पहला शासनादेश मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की तरफ से जारी हुआ था। इसके बाद समय-समय पर इसे सख्ती से लागू करने के निर्देश जारी किए जाते रहे हैं। सभी जिला अधिकारियों के अधीन एक कमिटी बनाई गई थी, जो इसकी निगरानी करती थी।

उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण विभाग के अंतर्गत करीब 85 योजनाएं संचालित हो रही हैं। सभी योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 फीसदी कोटा दिया जाता है। जिलों में जिलाधिकारियों के अधीन बनी एक समिति इन योजनाओं की निगरानी करती है।

वर्ष 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 फीसदी कोटा मंजूर किया था। उस समय विपक्ष ने आरोप लगाया था कि सपा सरकार अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए ऐसा कर रही है। इस बारे में समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने कहा कि हम योजनाओं में कोटा देने के पक्ष में नहीं हैं। रमापति शास्त्री ने कहा कि योजनाओं में किसी भी प्रकार को कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए।

वक्फ राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि पिछली सरकार ने योजनाओं में कोटा देकर भेदभाव किया। योजनाओं में सभी का हक बराबर है। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या ने कहा कि योजनाओं में कोटे का कोई मतलब नहीं है। योजनाएं सभी के विकास के लिए होती हैं।

अखिलेश सरकार ने यह फैसला नैशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्टों के बाद लिया था। सर्वे की रिपोर्टों में धार्मिक समूहों में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति को आधार बनाया गया था। रिपोर्टों में कहा गया था कि मुसलमानों का औसत प्रति व्यक्ति खर्च रोजाना सिर्फ 32.66 रुपये है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुसलमान परिवारों का औसत मासिक खर्च 833 रुपये, जबकि हिंदुओं का 888, ईसाइयों का 1296 और सिखों का 1498 रुपये बताया गया था। शहरी इलाकों में मुसलमानों का प्रति परिवार खर्च 1272 रुपये था जबकि हिंदुओं का 1797, ईसाइयों का 2053 और सिखों का 2180 रुपये था।

कृषि, गन्ना विकास, लघु सिंचाई, उद्यान, पशु-पालन, कृषि विपणन, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य, लोक निर्माण, सिंचाई, ऊर्जा, लघु उद्योग, खादी ग्रामोद्योग, रेशम विकास, पर्यटन, बेसिक शिक्षा, उच्च शिक्षा, युवा कल्याण, नगर विकास, नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन, समाज कल्याण, पिछड़ा वर्ग कल्याण, व्यावसायिक शिक्षा, विकलांग कल्याण, महिला कल्याण, दुग्ध विकास तथा समग्र ग्राम विकास विभाग।

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