निर्देशक कबीर खान और सलमान खान की जोड़ी दो सुपरहिट फिल्में देने के बाद अपनी तीसरी फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ लेकर आई है, जो आज सिनेमाघरों में रिलीज हुई है और हम लाएं हैं आपके लिए ‘ट्यूबलाइट’ मूवी का रिव्यू. ‘ट्यूबलाइट’ चीन बॉर्डर पर बसे एक गांव में रहने वाले दो भाइयों की कहानी है, जिनमें एक है लक्ष्मण (सलमान खान) और दूसरा भरत (सोहेल खान). यह दोनों भाई अपने माता-पिता की मौत के बाद एक अनाथ आश्रम में पले-बड़े हैं. लक्ष्मण को गांव में सब ‘ट्यूबलाइट’ बुलाते हैं क्योंकि उसमें सोचने समझने की शक्ति काम है.
इस फिल्म की कहानी 1962 के भारत चीन युद्ध के दौरान की बनाई गई है, जिसके चलते नौजवानों को सेना में भर्ती किया जा रहा है और इसी वक्त भरत भी सेना में भर्ती हो जाता है. ऐसे में भरत को अपने भाई लक्ष्मण की चिंता होती है जो उसके जाने के बाद अकेला पड़ जाएगा. लेकिन फिर भी भरत, युद्ध में जाने का फैसल करता है. भरत के जाने के बाद अब उसके भाई लक्ष्मण को उसके वापस आने का इंतजार है और उसे यकीन है कि वह वापस आएगा. पर क्या वह वापस आएगा? इसी यकीन और विश्वास पर ही टिकी है ‘ट्यूबलाइट’ की कहानी. इस यकीन का क्या अंजाम होता है, यह आपको सिनेमाघरों में जाने पर ही पता चलेगा.
‘ट्यूबलाइट’ में मुख्य भूमिकाओं में सलमान खान नजर आ रहे हैं और उनके साथ एक बार फिर स्क्रीन शेयर कर रहे हैं उनके रीयल लाइफ भाई सोहेल खान. इसके अलावा फिल्म में यशपाल शर्मा, जिशान, ब्रजेंद्र काले, मटीन रे तंगू और चायनीज ऐक्टर झू-झू भी नजर आ रही हैं. इस फिल्म में दिवंगत अभिनेता ओमपुरी भी नजर आ रहे हैं, जिनका इसी साल जनवरी में देहांत हो गया था. इस फिल्म का निर्देशन किया है और इसकी कहानी लिखी है कबीर खान ने और फिल्म को संगीत दिया है प्रीतम ने. फिल्म में बैकग्राउंड म्युजिक जूलीयस पककैम का है.
सबसे पहले इस फिल्म की कुछ कमियों पर नजर डालें तो इसकी सबसे बड़ी खामी है, इसकी लिखाई और निर्देशन. यानी कबीर खान अपने दोनों ही कामों में कुछ ढीलें पड़ गए हैं. फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीन्प्ले ढीला है, जिसकी वजह से आप ना तो फिल्म से और ना ही किरदारों से जुड़ पाते हैं. आप फिल्म के सीन्स देखते तो हैं, लेकिन इसके साथ उसके भावनात्मक सफर पर नहीं निकल पाते. फिल्म के कई पहलू आपको बेमाने लगते हैं और आपको समय बर्बाद करते से लगते हैं. फिल्म देख कर आपको लगता है की निर्देशक-लेखक कबीर खान को अपनी कहानी पर ही यकीन नहीं था.
‘ट्यूबलाइट’ की कहानी जिस तरह की है, उसमें ड्रामे की जरूरत थी लेकिन फिल्म के अहम दृश्यों में ड्रामा ही गायब है. मैं ज्यादा नहीं बताऊंगा, बस इतना कहूंगा की जो फिल्म के अहम दृश्य हैं और जिस फलसफे पर फिल्म टिकी है, उन दृश्यों में दर्शक उलझ जाते हैं कि ये यकीन की ताकत है या फिर इत्तेफाक.
फिल्म की कुछ अच्छाइयों पर नजर डालें तो ‘ट्यूबलाइट’ की पहली खूबी है सलमान खान. सलमान ने इस फिल्म में अभिनय करने की एक अच्छी कोशिश की है. हालांकि सलमान के फैन्स को न तो स्क्रिप्ट से कोई लगाव होता है और न ही कहानी से, उन्हें सिर्फ सलमान से मतलब होता है. कई जगह उन्होंने अपने हाव भाव और बॉडी लैंग्वेज के जरिए अच्छे अभिनय का प्रदर्शन किया है.
मुझे इस फिल्म की दूसरी खूबी लगी इसका विषय, जिसका प्रमुख संदेश है कि अगर आपको खुद पर यकीन है तो आप चट्टान भी हिला सकते हैं. हालांकि यह फिल्म हॉलीवुड फिल्म ‘लिटिल बॉय’ से प्रेरणा लेकर बनी है तो यह संदेश भी उसी फिल्म से लिया गया है. इसकी तीसरी खूबी है इसका संगीत और गाने. फिल्म के गाने अच्छे हैं. दिवंगत अभिनेता ओम् पूरी की ये आखिरी फिल्मों में से एक है और उनका किरदार और काम दोनों ही काफी अच्छे हैं. एक्टर ब्रजेंद्र काले की भी एक्टिंग फिल्म में काफी अच्छी है.