एक मासूम के सवाल पे आज हमारे शांत तालाब के पानी से ठहरे मन में अंतर्द्वंद पैदा कर दिया और उस अंतर्द्वंद ने हमारे मस्तिस्क के आल जंजाल को ऐसा हेलीकाप्टर शॉट मारा की न चाहते हुए भी हम छद्म बुद्धिमता भरी इस दुनिया में अपना कदम रख दिया इस ब्लॉग के माध्यम से !
जी अब ये सवाल जबाब जो हमारे बीच हुए मैं आपके बताता हु !
बच्चा : अंकल हमको किसने बनाया है ?
बेटा भगवान ने मैंने कहा
बच्चा : तो क्या हम भी भगवन को बना सकते है ???
मैंने बड़ी ही आसानी से कहा नहीं बेटा नहीं …हम उसे नहीं बना सकते …उसने तो दुनिया को बनाया है!
हमारा ये जबाब सुनते ही ये महाशय कुछ उलझे हुए लगे ..और थोड़ी देर खुद से बात करने के बाद बोले ……तो फिर अंकल लोग मंदिर क्यूँ बनाते है ?
सवाल सुनने के बाद एकबारगी हमें लगा की हम किसी शास्त्रार्थ के दौरान बाजी हारने से पहले की घबराहट से गुजर रहे है जब हमें पता होता है की हार निश्चित है फिर भी हम बार बार अपने तरकश में बचे हुए तीर देखते है और उनसे बाजी जीत लेने की नाकाम कोशिश करते है !
फिर भी मैंने सोचा बच्चा ही तो है कुछ भी कह के बहका देंगे …और इसी गलतफहमी में हमने उससे कहा बेटा लोग मंदिर इसलिए बनाते है ताकि वो अपने धरम और भगवन से जुड़े रहे उनकी और आने वाली पीढ़ियों की आस्था बनी रहे !! हमारा ये जबाब सही है या नहीं ये हमें भी नहीं पता था लेकिन बच्चे को एक दम पसंद नहीं आया और उसके दिमाग में फिर से बिजली कोंधी…उसके मन और हज़ार सवाल आ गए ये उसके चेहरे से विदित हो रहा था ! हम उस से जान बचा के वहां से निकलने का रास्ता सुझा पाते उससे पहले उसने मिसाइल दाग दी जब उसने बड़ी ही मासूमियत से कहा दादी तो कहती है की भगवान् तो दिल में होने चाहिए जिस से मानवता बनी रही और मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है तो मंदिर बनाना जरुरी है क्या?? फिर भगवन तो सब जगह है ??? जिसने पूरी दुनिया बनायी वो अपना मंदिर खुद ही बना सकते है हम क्यूँ बनाते है ???????
इस सवाल के जवाब में हमने अपने आप से दस सवाल पूछे दायें देखा बाएं देखा पर कुछ नहीं सुझा तो हम उसको कल जबाब देंगे का बहाना बना कर वहां से निकल लिए! वहां से तो निकल आये पर अपने आप से भाग के कहाँ जाएँ सवाल तो बने ही रहेंगे न…. जिसने सारी दुनिया को बनाया क्या हम उसको बना सकते है क्या ???? क्या उसे हमारी इस मेहरबानी की जरुरत है ????
मैं अब ये सोच रहा था की ये बच्चा कोई साधारण बच्चा तो हो ही नहीं सकता बिलकुल नहीं …दस बारह साल का बच्चा और इतनी गहरी सोच कुछ तो गड़बड़ है ! तुम कौन हो बेटा ये पूछ्ने की तमन्ना में हम फिर से उसी जगह की और दौड़ पड़े , जैसे तैसे वहां पहुंचे तो देखा वो बच्चा अभी भी वही खड़ा है हलकी मुस्कराहट है होठों पे और पेसनियो पे हजारो सवालों की लकीरें !! एक बारगी डर लगा की फिर से सवालो के ज्वालामुखी को छेड़े या नहीं पर फिर हिम्मत करके पूछ लिया “ तुम कौन हो”???
बड़ी बेसब्री से उसके चेहरे की और टकटकी लगाये जबाब की उम्मीद कर ही रहे थे की हमारी नींद खुल गयी और शास्त्रार्थ वाला सपना अधुरा रह गया !!
पर छोड़ गया ढेर सारे सवाल मेरे लिए आपके लिए हमारे समाज के लिए ??????