नई दिल्ली। अल नीनो की वजह से भारतीय मानसून में किसी तरह की कोई परेशानी नजर नहीं आ रही है। विशेषज्ञों ने उम्मीद जताई है कि मानसून इसके प्रभाव से बच सकता है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के लंबी अवधि के पूर्वानुमान वाले डिवीजन के प्रमुख डी एस पै ने कहा, “बारिश पर इसका कोई असर नहीं हो सकता है क्योंकि अल नीनो संभवतः इस वर्ष तक विकसित नहीं होगा। फिलहाल स्थिति इसके प्रभाव से बाहर है। अप्रैल और मई में अधिक जानकारी उपलब्ध होने पर इसकी स्पष्टता होगी।”
विश्व स्तर पर लंबे समय से ऐसे पूर्वानुमान लगाए जा रहे थे कि अल नीनो इस साल प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ाएगा। ऑस्ट्रेलिया के मौसम विभाग (एबीएम) ने 28 फरवरी को बताया था कि 2017 में अल नीनो की स्थिति बनने की संभावना बढ़ी है।
एबीएम ने 8 माडल्स पर सर्वे किया था, जिसमें से छह मॉडल्स से पता चला था कि जुलाई 2017 तक अल नीनो सीमा पर पहुंचा जा सकता है। इससे 2017 में अल नीनो बनने की संभावना 50 प्रतिशत हो जाती है।
अनुमान के मुताबिक भारत में मानसून के आखिरी चरणों (जून से सितंबर) में इसका प्रभाव दिख सकता है। इन्हीं महीनों में किसान बारिश और तापमान के मुताबिक गेहूं की फसलों को काटता है। पिछले महीने प्रकाशित ब्लूमबर्ग सर्वेक्षण के मुताबिक, गेहूं का उत्पादन शायद सरकारी अनुमान से कम होगा, आयात बढ़ाना होगा।
भारत के मौसम विभाग ने पिछले हफ्ते कहा था कि मार्च से मई तक 2016 तक सबसे सामान्य तापमान भारत में ऊपर सामान्य तापमान होने की संभावना है, जबकि 1901 के बाद से सबसे गर्म वर्ष है। हालांकि ला नीना की स्थिति जुलाई से प्रशांत महासागर से प्रचलित है, पूर्वानुमान से पता चलता है कि पैटर्न कमजोर होगा।