नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि जब आधार कार्ड को ऑप्शनल बनाने के बारे में ऑर्डर दिया जा चुका है तो केंद्र सरकार उसे जरूरी कैसे बना सकती है? बता दें कि पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा था कि सरकार और उसकी एजेंसियां आधार कार्ड को सोशल वेलफेयर स्कीम्स का फायदा लेने के लिए जरूरी नहीं कर सकतीं। बता दें कि अभी केंद्र के 19 मंत्रालयों की 92 स्कीम्स में आधार का इस्तेमाल हो रहा है। अटॉर्नी जनरल ने क्या क
– न्यूज एजेंसी ANI के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार ने यह पाया है कि शेल कंपनियों को फंड्स डायवर्ट करने के लिए कई पैन कार्ड का इस्तेमाल किया गया था। ऐसी चीजों को रोकने का एक ही ऑप्शन है कि आधार कार्ड को जरूरी किया जाए।
– इस केस में अगली सुनवाई 26 अप्रैल को होगी।
पिछली सुनवाई में क्या हुआ था?
– सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार और उसकी एजेंसियां आधार कार्ड को सोशल वेलफेयर स्कीम्स का फायदा लेने के लिए जरूरी नहीं कर सकतीं। हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि सरकार और उसकी एजेंसियों को नॉन-वेलफेयर स्कीम्स जैसे बैंक खाते खोलने में आधार का इस्तेमाल करने से नहीं रोका जा सकता।
– चीफ जस्टिस जेएस खेहर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और एसके कौल ने कहा था, “आधार को चुनौती देने वाली पिटीशंस की सुनवाई के लिए 7 जजों की एक बेंच बनाई जानी है, लेकिन फिलहाल अभी ऐसा संभव नहीं है, इस बारे में फैसला बाद में किया जाएगा।” इन पिटीशंस के पीछे सिटीजंस की प्राइवेसी के राइट के वॉयलेशन का हवाला दिया गया है।
– इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2015 को कहा था कि सरकार की वेलफेयर स्कीम्स का फायदा लेने के लिए आधार जरूरी नहीं रहेगा। इसके साथ ही कोर्ट ने इस स्कीम के तहत एनरोलमेंट के लिए पर्सनल बायोमीट्रिक डाटा कलेक्ट करने से सरकार को रोक दिया था। जजों की बेंच ने केंद्र सरकार को जारी अपने इंटरिम ऑर्डर में कहा था, “हम यह क्लियर कर देना चाहते हैं कि आधार कार्ड स्कीम पूरी तरह से वॉलंटरी है और इसे तब तक मैंडेटरी नहीं किया जा सकता, जब तक कि कोर्ट इस मामले में अपना आखिरी फैसला नहीं दे देती।”