हेग स्थित इंटरनेशनल कोर्ट में कुलभूषण जाधव मामले को लेकर भारत और पाकिस्तान आमने सामने हैं। भारत इस मामले में पहले अपना पक्ष रखा। उसके बाद पाकिस्तान ने भी अपना पक्ष रखा। कोर्ट ने कहा कि इस मसले पर जल्द से जल्द फैसला सुनाया जाएगा। सुनावाई के दौरान आइसीजे ने पाकिस्तान को करारा झटका दिया। आइसीजे ने पाकिस्तान की ओर से पेश किए गए जाधव के कबूलनामे का वीडियो देखने से इन्कार कर दिया। पाकिस्तान की ओर से पैरोकारों ने कहा कि भारत की याचिका गैर जरूरी और गलत है। भारत ने इस कोर्ट का इस्तेमाल राजनीतिक थियेटर के रूप में किया है।
कुलभूषण के पासपोर्ट पर छपे मुस्लिम नाम का जिक्र करते हुए पाकिस्तान ने कहा कि इस विषय पर भारत सफाई देने में असमर्थ रहा है। पाक ने यह भी दलील दी है कि जाधव मामले में वियना संधि लागू नहीं होती है। राष्ट्रीय सुरक्षा पर आइसीजे फैसला नहीं ले सकती। पाक ने कहा कि जाधव ने अपना जुर्म कबूल किया है और इस मामले में भारत की अर्जी खारिज होनी चाहिए। पाकिस्तान ने कोर्ट से कहा है कि जाधव को फांसी देने की कोई जल्दी नहीं है। जाधव के पास अपील करने के लिए 150 दिन हैं, साथ ही यह भी कहा कि जाधव काउंसलर एक्सेस के योग्य नहीं है। दोनों देशों की दलीलों को सुनने के बाद आइसीजे ने कहा है कि कोर्ट जल्द से जल्द फैसला सुनाएगा।
इस मामले में 11 जजों की बेंच ने सुनवाई की। कोर्ट के समक्ष भारत की ओर से संयुक्त विदेश सचिव (कानून) वी। डी शर्मा। ने कोर्ट को बताया कि पाकिस्तान ने भारत की मांग ना मान कर वियना संधि का उल्लंघन किया। पाकिस्तान की ओर से मुअज्जम अहमद खान (एजेंट), मोहम्मद फैसल (एजेंट), क्यूसी ख्वार कुरेशी (काउंसिल) आइसीजे में दलील पेश की।
आइसीजे में भारत ने कहा कि पाकिस्तान ने भारत को कुलभूषण से मिलने के लिए काउंसलर एक्सेस नहीं दिया, आज भारत के सवा अरब लोग न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। भारत ने कहा कि न्यायिक मदद के बिना जाधव को फांसी की सजा सुनाई गई और उन्हें ISI ने फंसाया। इस मामले में उनकी मां की अपील तक नहीं सुनी गई। भारत ने कहा कि जाधव की गिरफ्तारी के बाद भारत को कोई जानकारी नहीं दी गई।
भारत का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि जाधव के परिवारवालों की तरफ से वीजा आवेदन अभी भी लंबित है और भारत चाहता है कि कुलभूषण जाधव को लेकर पाकिस्तान की सैन्य अदालत के फैसले को अमान्य करार दिया जाए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की तरफ से जाधव के ट्रायल को लेकर कोई दस्तावेज भारत को नहीं दिया गया। जाधव को ईरान से अगवा किया गया और जबरदस्ती बयान लिया गया।
बता दें कि पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने पिछले महीने जाधव को मौत की सजा सुनाई है। इससे पहले 1999 में पाकिस्तानी नौसैनिक विमान को मार गिराने के मामले में दोनों देश इस न्यायालय में आमने-सामने आए थे।
संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख न्यायिक निकाय आइसीजे, सोमवार को नीदरलैंड के हेग स्थित पीस पैलेस के ग्रेट हॉल ऑफ जस्टिस में इस मामले की सार्वजनिक सुनवाई करेगा। भारत ने आठ मई को इस अंतरराष्ट्रीय अदालत में याचिका दायर की थी। भारत का आरोप है कि पाकिस्तान ने विएना समझौते का उल्लंघन कर उसके पूर्व नौसैनिक अधिकारी से राजनयिक संपर्क के आवेदन को लगातार 16 बार खारिज कर दिया। इसके अलावा पाकिस्तान ने जाधव के परिवार के वीजा आवेदन का भी कोई जवाब नहीं दिया।
इससे पहले पाकिस्तानी नौसैनिक विमान को मार गिराने के मामले में दोनों देश अंतराष्ट्रीय न्यायालय में आए थे। भारतीय वायु सेना ने 10 अगस्त, 1999 को कच्छ क्षेत्र में पाकिस्तानी नौसेना के विमान ‘अटलांटिक’ को मार गिराया था। विमान में सवार सभी 16 नौसैनिक कर्मी मारे गए थे। पाकिस्तान का दावा था कि विमान को उसकी ही वायुसीमा में मार गिराया गया, लिहाजा उसने भारत से छह करोड़ अमेरिकी डॉलर के हर्जाने की मांग की थी। 21 जून, 2000 को अदालत की 16 सदस्यीय पीठ ने पाकिस्तान के दावे को 14-2 के बहुमत से खारिज कर दिया था। यह फैसला अंतिम था और इसके खिलाफ कोई अपील संभव नहीं थी।
अदालत में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तत्कालीन अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने किया था। सुनवाई के दौरान आइसीजे ने भारतीय दलीलों से सहमत हुए पाया कि उसे पाकिस्तान के 21 सितंबर 1999 को दायर आवेदन पर विचार करने का अधिकार ही नहीं है। दरअसल, सुनवाई के प्रारंभ में ही दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हो गए थे कि पहले न्यायाधिकार के सवाल पर फैसला हो, उसके बाद ही मामले के गुण-दोषों पर सुनवाई की जाए।
भारत की दलील थी कि यह मामला आइसीजे के न्यायाधिकार से बाहर है। इस संदर्भ में उसने 1974 की उस छूट का हवाला दिया जिसमें भारत और अन्य राष्ट्रमंडल देशों के बीच विवाद और बहुराष्ट्रीय समझौतों के तहत आने वाले विवादों को आइसीजे के दायरे से बाहर रखा गया था। इसके अलावा सोराबजी का कहना था कि घटना के लिए पाकिस्तान ही पूरी तरह जिम्मेदार था, लिहाजा उसे अपनी करनी का परिणाम भुगतना ही चाहिए। हालांकि, पाकिस्तान ने भारत की दलीलों का विरोध किया था, लेकिन अदालत ने उसे नहीं माना।