देहरादून: अब इसे साफगोई कहें या फिर जल्दबाजी का नतीजा, मुख्यमंत्री हरीश रावत ने पंद्रह साल पुराना राजनैतिक इतिहास फिर दोहरा दिया। शनिवार को पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कह डाला कि कार्यकर्ता किसी भी परिस्थिति, यानी हार-जीत के लिए तैयार रहें।
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव नतीजे आने से पहले ही मुख्यमंत्री के इस वक्तव्य के तमाम सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। हालांकि रविवार को उन्होंने मीडिया के समक्ष इस बयान पर स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश जरूर की मगर इस घटनाक्रम ने वर्ष 2002 में पहले विधानसभा चुनाव की मतगणना के दौरान तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के रूप में जल्दबाजी में दी गई उनकी प्रतिक्रिया की याद जरूर दिला दी।
उत्तराखंड में पहले विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने मौजूदा मुख्यमंत्री व तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत के नेतृत्व में लड़े थे। इस चुनाव से महज डेढ़ साल पहले ही उत्तराखंड (तब राज्य का नाम उत्तरांचल था) अलग राज्य के रूप में वजूद में आया था तो स्वाभाविक रूप से भाजपा को पूरा भरोसा था कि अलग राज्य निर्माण के श्रेय के रूप में जनादेश उसी के पक्ष में आएगा।
चुनाव के दौरान माहौल भी कुछ इसी तरह का नजर आ रहा था। मतदान इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन पर हुआ था तो मतगणना शुरू होने के दो-ढाई घंटे बाद सामने आए आरंभिक रुझान भी कुछ इसी तरह का संकेत देते दिखे। भाजपा के तमाम दिग्गज अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों में प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले बढ़त ले रहे थे। तब शायद किसी को भी गुमान नहीं था कि चंद मिनटों में चुनावी ऊंट किस कदर करवट बदलने वाला है।
शुरुआती तीन घंटों के बाद स्थिति यह थी कि भाजपा बहुमत के आंकड़े से ज्यादा सीटों पर रुझान में आगे निकल गई और उसे टक्कर दे रही कांग्रेस लगभग डेढ़ दर्जन सीटों पर सिमटती महसूस हुई। तत्कालीन कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष हरीश रावत स्वयं प्रदेश मुख्यालय में बैठकर मतगणना के रुझान पर नजर रखे हुए थे। कांग्रेस का प्रदर्शन उस वक्त इस कदर दयनीय लग रहा था कि रावत ने केवल रुझान के ही आधार पर अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए लगभग हार स्वीकार कर ली।
साफगोई कहें या फिर जल्दबाजी!
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