गर्मी और चिलचिलाती धूप बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी को बीमार कर रही है। इस मौसम में तेज धूप और गर्मी के कारण आने वाला फीवर हाइपर थर्मिया भी हो सकता है, जिसकी चपेट में सबसे ज्यादा बच्चे और बूढ़े आते हैं। दिन-ब-दिन बढ़ रही इस गर्मी में अपना ध्यान रखना हर किसी के लिए बेहद जरूरी है, क्योंकि हाइपर थर्मिया घातक भी हो सकता है।
डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं कि इस मौसम में यदि किसी का शरीर गर्म है तो ज
डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं कि इस मौसम में यदि किसी का शरीर गर्म है तो जरूरी नहीं कि सामान्य बुखार ही हो। यह हीट स्ट्रोक यानी हाइपर थर्मिया भी हो सकता है। हाइपर थर्मिया को साधारण बुखार मानना बड़ी भूल साबित हो सकता है। तापमान के बढ़ने के साथ शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है, जिस कारण दिमाग की एक ग्रंथी हाइपो थैलेमस शरीर के हीट रेग्युलेटरी सिस्टम की तरह काम करती है। यह शरीर के तापमान को संतुलित रखने का काम करती है। तेज गर्मी के कारण कई बार इस ग्रंथी में कमजोरी आ जाती है और यह काम करना बंद कर देती है। ऐसे में तापमान का संतुलन बिगड़ जाता है। जब शरीर से अनावश्यक गर्मी बाहर नहीं निकल पाती तो इससे शरीर गर्म होने लगता है। शरीर में पानी की कमी यानी डीहाइड्रेशन से भी ऐसा होता है। यह काफी खतरनाक और जानलेवा भी हो सकता है।
डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं कि इस मौसम में यदि किसी का शरीर गर्म है तो ज
डॉ. के. के. अग्रवाल कहते हैं कि इस मौसम में यदि किसी का शरीर गर्म है तो जरूरी नहीं कि सामान्य बुखार ही हो। यह हीट स्ट्रोक यानी हाइपर थर्मिया भी हो सकता है। हाइपर थर्मिया को साधारण बुखार मानना बड़ी भूल साबित हो सकता है। तापमान के बढ़ने के साथ शरीर का तापमान भी बढ़ने लगता है, जिस कारण दिमाग की एक ग्रंथी हाइपो थैलेमस शरीर के हीट रेग्युलेटरी सिस्टम की तरह काम करती है। यह शरीर के तापमान को संतुलित रखने का काम करती है। तेज गर्मी के कारण कई बार इस ग्रंथी में कमजोरी आ जाती है और यह काम करना बंद कर देती है। ऐसे में तापमान का संतुलन बिगड़ जाता है। जब शरीर से अनावश्यक गर्मी बाहर नहीं निकल पाती तो इससे शरीर गर्म होने लगता है। शरीर में पानी की कमी यानी डीहाइड्रेशन से भी ऐसा होता है। यह काफी खतरनाक और जानलेवा भी हो सकता है।
क्या है कारण
इस मौसम में तेज धूप और गर्म हवाओं के कारण इसका खतरा वैसे ही बढ़ जाता है। उस पर हम अगर तरल पदाथार्ें का सेवन सही ढंग से नहीं करते और गर्म हवाओं से अपना बचाव नहीं करते तो इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा हमारा रहन-सहन भी इसका कारण बनता है। अकसर सर्दियों में हम खुद को बहुत ढक कर रखते हैं। फिर जब एकाएक गर्मी का मौसम आता है तो शरीर यह बदलाव झेल नहीं पाता। कई बार लोग गर्मी में भी खुद को ज्यादा कपड़ों में ढक कर रखते हैं। ऐसे में हाइपर थर्मिया का खतरा रहता है।
इस मौसम में तेज धूप और गर्म हवाओं के कारण इसका खतरा वैसे ही बढ़ जाता है। उस पर हम अगर तरल पदाथार्ें का सेवन सही ढंग से नहीं करते और गर्म हवाओं से अपना बचाव नहीं करते तो इसका खतरा और भी बढ़ जाता है। इसके अलावा हमारा रहन-सहन भी इसका कारण बनता है। अकसर सर्दियों में हम खुद को बहुत ढक कर रखते हैं। फिर जब एकाएक गर्मी का मौसम आता है तो शरीर यह बदलाव झेल नहीं पाता। कई बार लोग गर्मी में भी खुद को ज्यादा कपड़ों में ढक कर रखते हैं। ऐसे में हाइपर थर्मिया का खतरा रहता है।
सामान्य बुखार से अलग है यह
हाइपर थर्मिया सामान्य बुखार से अलग है। सामान्य बुखार में शरीर का तापमान 100 से 105 डिग्री फारेनहाइट रहता है, जबकि हाइपर थर्मिया में शरीर का तापमान उससे अधिक भी हो जाता है। हाइपो व हाइपर थर्मिया दोनों ही अलग अवस्थाएं हैं। हाइपर थर्मिया में जहां शरीर का तापमान बढ़ जाता है, वहीं हाइपो थर्मिया में यह तापमान घट जाता है। हाइपो थर्मिया में शरीर की हीट बहुत ज्यादा मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाती है, जबकि हाइपर थर्मिया में हीट निकल नहीं पाती।
हाइपर थर्मिया सामान्य बुखार से अलग है। सामान्य बुखार में शरीर का तापमान 100 से 105 डिग्री फारेनहाइट रहता है, जबकि हाइपर थर्मिया में शरीर का तापमान उससे अधिक भी हो जाता है। हाइपो व हाइपर थर्मिया दोनों ही अलग अवस्थाएं हैं। हाइपर थर्मिया में जहां शरीर का तापमान बढ़ जाता है, वहीं हाइपो थर्मिया में यह तापमान घट जाता है। हाइपो थर्मिया में शरीर की हीट बहुत ज्यादा मात्रा में शरीर से बाहर निकल जाती है, जबकि हाइपर थर्मिया में हीट निकल नहीं पाती।
हो सकता है जानलेवा
अगर तुरंत इलाज न हो तो हाइपर थर्मिया जानलेवा भी हो सकता है। ज्यादा गर्मी से शरीर में थकावट महसूस होना और हाइपर थर्मिया दोनों में अंतर है। हाइपर थर्मिया हीट स्ट्रोक और लू लगने से ज्यादा गंभीर स्थिति है। तेज धूप या तेज तापमान में काफी देर तक सनलाइट के संपर्क में रहने से शरीर का तापक्रम 98.6 डिग्री फारेनहाइट से कहीं अधिक हो जाता है। अगर शरीर का तापक्रम 104 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा हो जाए तो चिंताजनक स्थिति होती है।
अगर तुरंत इलाज न हो तो हाइपर थर्मिया जानलेवा भी हो सकता है। ज्यादा गर्मी से शरीर में थकावट महसूस होना और हाइपर थर्मिया दोनों में अंतर है। हाइपर थर्मिया हीट स्ट्रोक और लू लगने से ज्यादा गंभीर स्थिति है। तेज धूप या तेज तापमान में काफी देर तक सनलाइट के संपर्क में रहने से शरीर का तापक्रम 98.6 डिग्री फारेनहाइट से कहीं अधिक हो जाता है। अगर शरीर का तापक्रम 104 डिग्री फारेनहाइट से ज्यादा हो जाए तो चिंताजनक स्थिति होती है।
क्या हैं लक्षण
जब तेज सिरदर्द, सांस तेजी से लेना, दिल की धड़कन तेज होना, त्वचा लाल हो जाना, चक्कर आना, उल्टी आना, काफी पसीना आना जैसे लक्षण दिखने लगें तो समझ जाएं कि यह हाइपर थर्मिया अटैक है। इसके बाद मरीज को तुरंत मेडिकल केयर में रखना चाहिए।
जब तेज सिरदर्द, सांस तेजी से लेना, दिल की धड़कन तेज होना, त्वचा लाल हो जाना, चक्कर आना, उल्टी आना, काफी पसीना आना जैसे लक्षण दिखने लगें तो समझ जाएं कि यह हाइपर थर्मिया अटैक है। इसके बाद मरीज को तुरंत मेडिकल केयर में रखना चाहिए।
होता है इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन
तेज धूप से लोगों में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन की शिकायत होती है, जो शुगर, बीपी और न्यूरो की दवाएं खाने वाले मरीजों के लिए ज्यादा खतरनाक है। तेज धूप और गर्मी से शरीर में सोडियम और पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। इसी के चलते लोगों में हाइपर थर्मिया की बीमारी हो जाती है। इसमें तेज बुखार के बाद शरीर तपने लगता है। इस बीमारी का एक कारण शरीर में पानी की कमी भी होता है।
तेज धूप से लोगों में इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन की शिकायत होती है, जो शुगर, बीपी और न्यूरो की दवाएं खाने वाले मरीजों के लिए ज्यादा खतरनाक है। तेज धूप और गर्मी से शरीर में सोडियम और पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। इसी के चलते लोगों में हाइपर थर्मिया की बीमारी हो जाती है। इसमें तेज बुखार के बाद शरीर तपने लगता है। इस बीमारी का एक कारण शरीर में पानी की कमी भी होता है।
कैसे हो बचाव
गर्मी में शारीरिक गतिविधियां, खासकर बच्चों की अधिक सक्रियता उन पर भारी पड़ती है। इस मौसम में पानी कम पीने से फीवर होने की आशंका अधिक रहती है, जो हाइपर थर्मिया भी हो सकता है। लोगों को इस मौसम में अपना खास ख्याल रखना चाहिए। इस मौसम में सबसे फायदेमंद है पानी और दूसरे तरल पदार्थ, इसलिए इन चीजों का प्रयोग करें।
0 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चीजों का सेवन करें।
0 शरीर को ज्यादा ढक कर न रखें। सूती कपड़े ही पहनें।
0 ठंडे कमरे या ठंडे स्थान में रहें।
0 शरीर के ज्यादा गर्म होने पर शरीर पर समय-समय पर गीला कपड़ा फेरते रहें।
0 दो साल से अधिक उम्र के बच्चों को पानी के अलावा मिनरल्स भी दें।
0 कमरे के तापमान को 30 डिग्री तक रखने का प्रयास करें।
0 ओआरएस, ग्लूकोस या नीबू पानी का सेवन करें।
0 लस्सी, पना, मट्ठा, सत्तू का शर्बत जैसे पेय पदार्थ लें।
0 धूप और तेज गर्मी से बचें।
0 परवल, लौकी, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, मौसमी, संतरा, अंगूर, आम और अनार खाएं।
0 कड़वे, खट्टे, चटपटे, मिर्च-मसालेदार तले खाने से बचें।
0 बासी भोजन न करें।
0 सूयार्ेदय से पहले स्नान कर दो से तीन किमी तक टहलें।
0 तेज बुखार होने पर कोल्ड स्पंजिंग करें।
गर्मी में शारीरिक गतिविधियां, खासकर बच्चों की अधिक सक्रियता उन पर भारी पड़ती है। इस मौसम में पानी कम पीने से फीवर होने की आशंका अधिक रहती है, जो हाइपर थर्मिया भी हो सकता है। लोगों को इस मौसम में अपना खास ख्याल रखना चाहिए। इस मौसम में सबसे फायदेमंद है पानी और दूसरे तरल पदार्थ, इसलिए इन चीजों का प्रयोग करें।
0 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली चीजों का सेवन करें।
0 शरीर को ज्यादा ढक कर न रखें। सूती कपड़े ही पहनें।
0 ठंडे कमरे या ठंडे स्थान में रहें।
0 शरीर के ज्यादा गर्म होने पर शरीर पर समय-समय पर गीला कपड़ा फेरते रहें।
0 दो साल से अधिक उम्र के बच्चों को पानी के अलावा मिनरल्स भी दें।
0 कमरे के तापमान को 30 डिग्री तक रखने का प्रयास करें।
0 ओआरएस, ग्लूकोस या नीबू पानी का सेवन करें।
0 लस्सी, पना, मट्ठा, सत्तू का शर्बत जैसे पेय पदार्थ लें।
0 धूप और तेज गर्मी से बचें।
0 परवल, लौकी, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, मौसमी, संतरा, अंगूर, आम और अनार खाएं।
0 कड़वे, खट्टे, चटपटे, मिर्च-मसालेदार तले खाने से बचें।
0 बासी भोजन न करें।
0 सूयार्ेदय से पहले स्नान कर दो से तीन किमी तक टहलें।
0 तेज बुखार होने पर कोल्ड स्पंजिंग करें।