दिल्ली में हुए इस बर्बर कांड के बाद सड़कों पर हजारों युवा उतरे। कड़े कानून के लिए रायसीना हिल्स के सीने पर चढ़ युवाओं ने नारे बुलंद किए, लाठियां खाईं, कड़ाके की ठंड में जलतोप की बौछारों से भीगे। देश के कई शहरों में भी आक्रोश प्रदर्शन हुआ, लेकिन दुष्कर्म का सिलसिला थमा नहीं। क्यों? यह बड़ा सवाल है।
सरकार केंद्र की हों या राज्यों की, नारा देती ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ लेकिन मासूम बच्चियों तक के साथ हो रही घिनौनी वारदातों की फिक्र किसी को नहीं, सभी मौन हैं। दुष्कर्म पीड़िताओं को समाज तिरस्कार की नजरों से देखता है। इनके लिए समुचित योजना भी नहीं है। देश में दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए उचित पुनर्वास योजना नहीं है। हमारे पास पर्याप्त सुविधाएं हैं, लेकिन उचित योजना नहीं है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, दुष्कर्म के मामलों में दिल्ली अन्य राज्यों के मुकाबले शीर्ष पर है। वर्ष 2014 में दिल्ली में 1,813 मामले दर्ज हुए, जबकि 2013 में 1,441 मामले दर्ज हुए। विभिन्न संगठनों द्वारा अलग-अलग स्तर पर किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि नाबालिगों से दुष्कर्म के मामले बढ़ रहे हैं। सरकार द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में 46 प्रतिशत दुष्कर्म पीड़ित नाबालिग हैं। राज्यसभा द्वारा 10 दिसंबर, 2015 को दी गई जानकारी के मुताबिक, इस साल 31 अक्टूबर तक लगभग 1,856 दुष्कर्म मामले दर्ज किए गए और इनमें 824 मामलों में पीड़ित नाबालिग हैं।
देश में बढ़ते दुष्कर्म के मामलों में कमी लाने के लिए समाज में लोगों की मानसिकता और कानून प्रणाली में बदलाव की जरूरत है, यह सभी ने माना। साथ ही लोग यह भी मानते हैं कि दुष्कर्म पीड़िताओं को सशक्त बनाने के लिए जागरूकता फैलाना भी जरूरी है। लेकिन इस दिशा में कदम बढ़ाएगा कौन यह भी एक सवाल।