
desi fashion: भारतीयों को आमतौर पर फैशन प्रेमी माना जाता है क्योंकि इस देश की संस्कृति में विविधता ने फैशन की प्रचुरता का वरदान दिया है। हम कितने भी पाश्चात्य हो जाएं, लेकिन देसीपन के बिना हमारा फैशन अधूरा लगता है। फैब्रिक पर गांवों की बेजोड़ कला पाश्चात्य परिधानों में भी नयापन ला देती हैं। भारतीय फैशन डिजाइनर्स के खास कलेक्शन में गांवों से जुड़ी आर्ट की झलक मिलती है।
desi fashion: फैशन डिजाइनर अनीता डोंगरे अपने कलेक्शन में रूरल आर्ट जरूर शामिल करती हैं। उनका कच्छ कलेक्शन इसका उदाहरण है जिसमें बांधनी और अजरख की हैंड ब्लॉक प्रिंट का मेल देखा गया। अजरख गुजरात में हैंड ब्लॉक प्रिंट की सबसे पुरानी विधि है। इसे मार्केट तक पहुंचने में 16 स्टेप्स से गुजरना होता है। इसे पारम्परिक गहरे रंगों के साथ बनाया गया।
desi fashion: फैशन डिजाइनर रितु कुमार के इस खास कलेक्शन में बंजारा ट्राइब्स, उनके सौंदर्य और उनके अस्तित्व की झलक देखने को मिलती है। इसमें उन्होंने विंटर सीजन को देखते हुए जामावार, वेलवेट और ब्रोकेड का उपयोग किया है। उनके रंगों में भी सेंड ब्राउन, मॉस ग्रीन, ब्रिक रेड और सवाना यलो का चयन किया गया है।
जानिए रूरल आर्ट जो बनीं भारतीय फैशन की पहचान
दाबू व इंडिगो: राजस्थान में अकोला और मध्यप्रदेश के नीमच में नंदना कारीगरों की दाबू प्रिंट का कोई जवाब नहीं है। इसमें प्राकृतिक रंगों को अनार के छिलके, धावड़े का फूल और इमली के बीजों से तैयार किया जाता है। इंडिगो भी राजस्थान से संबंधित है। यह केवल एक डाई ही नहीं, कपड़े की पहचान बन गया है।
बाघ व चंदेरी: मध्यप्रदेश के धार जिले की यह पारम्परिक कला है। बाघ प्रिंट में आमतौर पर ज्यामितीय, पैस्ले और फ्लोरल डिजाइन होते हैं। इसका नाम बाघ नदी के तट पर स्थित गांव बाघ से लिया गया है। चंदेरी जिसे सदियों से मध्यप्रदेश की चंदेरी जगह ने संजोए रखा है। चंदेरी की साड़ियां महिलाओं की पसंद हैं।
ट्राइबल आर्ट: छत्तीसगढ़ में आदिवासी भित्ति चित्रों का उपयोग कपड़े पर उपयोग किया जाता है। आदिवासी भित्तिचित्रों को वेस्टर्न आउटफिट्स पर अधिक पसंद किया जाता है। उसके अलावा साड़ियों में भी इस कला को देखा गया है।