तमिलनाडु की स्टालिन सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच तनातनी इस कदर बढ़ी है कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई। स्टालिन सरकार का कहना है कि राज्यपाल जनता के हित और इच्छा को नजरअंदाज कर रहे हैं और उनके पास भेजे गए विधेयकों को मंजूरी नहीं मिल रही है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी देकर मांग की है कि राज्यपाल को समयसीमा के भीतर विधेयकों को मंजूरी देने का निर्देश दिया जाए। वहीं इसी तरह के टकराव को लेकर पंजाब की भगवंत मान सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है।
कई मुद्दों को लेकर तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल का आमना सामना होता रहा है। राज्य के नाम का मुद्दा हो या फिर स्टालिन कि विदेश यात्रा का। राज्य में द्रविड़ियन मॉडल की सरकार को लेकर भी सरकार और राज्यपाल में टकराव हुआ। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्यपाल के पास 12 विधेयक पेंडिंग हैं। इसके अलावा 54 कैदियों को जल्दी रिहा करने वाली फाइल पर भी राज्यपाल ने हस्ताक्षर नहीं किए हैं।
बता दें कि इसी साल जनवरी में राज्य के नाम को लेकर उनके बयान के बाद बवाल हो गया था। उन्होंने कहा था कि तमिलनाडु अलग ही रास्ते पर चल रहा है। जो पूरे देश के लिए लागू होता है तमिलनाडु उसे नहीं मानता। यह एक आदत बन गई है। बहुत सारी थेसिस लिखी गई है लेकिन यह सब कोरी कल्पना है। सत्य की विजय होगी। इस राज्य का नाम तमिजगम ही बेहतर है।
इसके बाद तमिलनाडु विधानसभा में जब स्टालिन ने कहा कि राज्यपाल के भाषण के उसी हिस्से को रिकॉर्ड में रखा जाए जिसे राज्य सरकार ने तैयार किया है तो आरएन रवि ने वॉकआउट कर दिया था। तमिलनाडु सरकार का कहना है कि आरएन रवि अपने पद का दुरुपयोग कर रहे हैं।
पंजाब सरकार की क्या है शिकायत
पंजाब सरकार का कहना है कि राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित ने 27 में से केवल 22 विधेयकों को ही मंजूरी दी है। हाल ही में तीन वित्त विधेयकों को लेकर राज्यपाल और मान सरकार के बीच टकराव बढ़ा है। स्पेशल सेशन से पहले राज्यपाल की मंजूरी के लिए मनी बिल भेजे गए थे जिन्हें मंजूरी नहीं मिली। इसके बाद भघवंत मान ने कहा था कि वह राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएँगे।