मिशन रानीगंज रिव्यू: अभिनेता अक्षय कुमार स्टारर ‘मिशन रानीगंज’ 6 अक्टूबर सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है। इस फिल्म की कहानी सच्ची घटना पर आधारित है और अक्षय इसमें रियल लाइफ हीरो जसवंत सिंह गिल का किरदार निभा रहे हैं। उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बिना जमीन से लगभग 350 फीट नीचे फंसे 65 वर्कर्स की जान बचाई थी।
2006 में हरियाणा के कुरूक्षेत्र में बोरवेल में 50 फीट नीचे गिरे लड़के प्रिंस को नई तकनीक की उपलब्धता के बावजूद बचाने के मिशन में लगभग तीन दिन लगे। इस घटना से लगभग 18 साल पहले 1989 में, जसवंत सिंह गिल ने केवल दो दिनों में जमीन से 300 फीट नीचे फंसे 65 श्रमिकों की जान बचाई थी। ‘कैप्सूल मैन’ जसवंत सिंह के किरदार में अक्षय कुमार एक बार फिर अपनी प्रतिभा का नया पहलू दर्शकों के सामने लेकर आए हैं। शुरुआती क्षण से लेकर चरमोत्कर्ष तक, यह फिल्म आपको अपनी सीट से बांधे रखती है।
लगभग 250 साल पहले की ब्रिटिश तकनीक की बुनियादी पद्धतियाँ आज भी दुनिया भर की कोयला खदानों में उपयोग की जाती हैं। भारत में पहली कोयला खदान रानीगंज में ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए काम करने वाले ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा शुरू की गई थी। बेशक, भारत में कोयला का पूरा कारोबार अंग्रेजों द्वारा बनाई गई व्यवस्था पर ही आधारित था। हालाँकि इंग्लैंड और भारत की खदानें छह हजार किलोमीटर दूर थीं, लेकिन दोनों कोयला खदानों में एक बात समान थी। यह खदानों में हुई दुर्घटना है।
फिल्म की कहानी
जसवन्त सिंह गिल (अक्षय कुमार) अपनी गर्भवती पत्नी (परिणीति चोपड़ा) के साथ रानीगंज में रहते हैं। जसवन्त पश्चिम बंगाल के रानीगंज में कोल इंडिया लिमिटेड में रेस्क्यू इंजीनियर के रूप में काम करते हैं। जब एक कोयले की खदान में विस्फोट के बाद पानी भरने लगता है, तो भूमिगत फंसे 71 लोगों की जान बचाने का जिम्मा जसवन्त पर आता है। लेकिन इस मिशन के शुरू होने से पहले ही छह कर्मचारियों की मौत हो जाती है। इस रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान जसवन्त सिंह गिल कई बाधाओं को पार करते हुए मिशन को पूरा करते हैं। लेकिन ये पूरा मिशन कैसे पूरा हुआ इसकी कहानी इस फिल्म में देखी जा सकती है।
निर्देशन
फिल्म ‘मिशन रानीगंज’ का निर्देशन टीनू सुरेश देसाई ने किया है। उन्होंने अक्षय कुमार की फिल्म ‘रुस्तम’ का भी निर्देशन किया था। ‘रुस्तम’ के बाद टीनू और अक्षय कुमार एक बार फिर इस फिल्म के लिए साथ आए हैं। पिछले सात सालों में टीनू के निर्देशन में कई बदलाव आए हैं और वही बदलाव इस फिल्म में भी देखने को मिल सकते हैं। फिल्म की परिकल्पना जसवन्त गिल की बेटी पूनम गिल ने की है और पटकथा विपुल के रावत ने लिखी है।
‘मिशन रानीगंज’ के डायरेक्शन की बात करें तो इस फिल्म की कहानी के साथ-साथ इसमें दिखाई गई डीटेल्स आपको प्रभावित करती हैं। इसमें 80 के दशक को बेहतरीन दिखाने की कोशिश की गई है। उस समय के माहौल, लोगों के पहनावे और उनकी भाषा पर बारीकी से ध्यान दिया गया है। रेस्क्यू मिशन के दौरान बनी डॉक्यूमेंट्री की तरह फिल्म की कहानी तेज गति से नहीं चलती है। तो इसमें जो सीन हैं वो कभी आपके चेहरे पर मुस्कान लाते हैं तो कभी आंखों में आंसू। भले ही आप इस फिल्म की शुरुआत और अंत जानते हों, लेकिन आप इसकी कहानी से जुड़े रहते हैं और यही निर्देशक की बड़ी सफलता है।
अभिनय
फिल्म में अक्षय कुमार ने जसवन्त सिंह गिल का किरदार बखूबी निभाया है। ‘मिशन रानीगंज’ में उनका प्रदर्शन ‘एयरलिफ्ट’ में अक्षय कुमार के प्रदर्शन से कहीं अधिक है। फिल्म में एक तरफ जसवंत हैं और दूसरी तरफ उनकी पत्नी। इस मामले में अक्षय कुमार की पत्नी का किरदार निभाने वाली परिणीति चोपड़ा काफी पॉजिटिव हैं। लेकिन फिल्म में उनके रोल के लिए ज्यादा स्कोप नहीं है। इन दोनों कलाकारों के अलावा वरुण बडौला, कुमुद मिश्रा, रवि किशन, पवन मल्होत्रा और दिव्येंदु भट्टाचार्य ने अपनी भूमिकाओं बखूबी से निभाया है।
फिल्म की कहानी को और दिलचस्प बनाने में एडिटिंग अहम भूमिका निभाती है। सिनेमैटोग्राफर असीम मिश्रा को कोयला खदान विवरण, डार्क लाइटिंग और कृत्रिम खदान शूटिंग के लिए कम आंका गया है। इसमें गाने कुछ खास नहीं हैं। लेकिन बैकग्राउंड म्यूजिक कमाल का है। ये बैकग्राउंड म्यूजिक हर सीन को और भी दिलचस्प बना देता है।
सुपरहीरो की तलाश करने वालों के लिए, यह फिल्म आपको सिखाती है कि आप अपनी कहानी के नायक खुद हैं। लेकिन इसके लिए आपको हर चुनौती का साहस के साथ सामना करना होगा। यह हमें सिखाता है कि हर व्यक्ति के अंदर एक जसवन्त सिंह गिला होता है, जो सही सोच और साहस से असंभव को भी संभव बना सकता है।